देश में आरक्षण को लेकर हमेशा माहौल गरमाया रहता है. कभी जाट समुदाय के लोग तो कभी दूसरे समुदाय के लोग आए दिन आंदोलन करते रहते है. आरक्षण की मांग करते रहते हैं. हाल में गुजरात में पटेल समुदाय के लोग भी लाखों की संख्या में सड़कों पर उतर आए. जिसका नेतृत्व ह्रादिक पटेल कर रहे थे. इस आंदोलन में कुछ लोगों को अपनी जान भी गवानी पड़ी.
जिनके घर के लोग आंदोलन के चपेट में आए थे. उनके परिवार का दर्द देखने कौन गया. आरक्षण को लेकर जब मोहन भागवत जी ने अपनी बात रखी तो उसपर राजनीति शुरू हो गई. राजनीतिक दल बीजेपी और आरएसएस को घेरने में जुट गए. मोहन भागवत जी ने तो यही कहा कि इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत हैं.
इस बात पर कांग्रेस के नेताओं ने भी अपना समर्थन आरएसएस प्रमुख को दिया. उन्होने भी यही कहा कि आरक्षण का आधार जाति से नही आर्थिक आधार पर होना चाहिए. बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. केंद्र में बीजेपी की सरकार है. मोहन भागवत के इस बयान पर राजनीति शुरू होते ही बीजेपी ने अपना पल्ला झाड़ लिया.
अगर देश में बीजेपी की सरकार न होती तो शायद इस बात का समर्थन करती और दूसरे दलों पर निशाना भी साधती. देश में आरक्षण और एससी एसटी ओबीसी को लेकर हमेशा राजनीति होती रही. राजनीतिक दल इन पर हमेशा अपनी रोटियां सेकते आए हैं. भागवत के बयान को तोड़ मरोड़ कर बताया जा रहा है. ऐसी बातें उनके बचाव में शुरू हो गई.
दलित समाज के हितैशी बनने वाले दलों से पूछना चाहता हूं. इतने सालों से आरक्षण लेकर क्या फायदा हुआ. दलित समाज आज भी पिछड़ा हुआ है. फायदा दलित समाज के उन लोगों को हुआ जो कि आर्थिक स्थिती से पूरी तरह सम्पन्न थे. शायद आर्थिक हिसाब से आरक्षण होता तो उन्हें इसका लाभ न मिलता. आज भी देश के गांवों में जाओ, देखो जिनपर ये अपनी राजनीतिक रोटी सेक रहे हैं उनकी हालत क्या है. आज भी दलित समाज के लोग दूसरों के खेत में काम कर अपना पालन पोषण कर रहे है. आज भी उनके लड़के बालिक न होते हुए भी काम करने लगते हैं. पढ़ाई –लिखाई का वो कोई मतलब नही समझते. उन्हें तो काम करके पैसा कमाने से मतलब है.
इस समाज को जागरूक करने की भी तो जरूरत है. गांवों में रहने वाले ऐसे परिवार जो अपने बच्चों को स्कूल के बजाए काम पर भेजते हैं. उनके बारे में क्या ख्याल हैं. हितैशी तो बहुत बनते हो. सिर्फ उनके लिए ये हितैशी पना है जो इस बर्ग में पूरी तरह से सम्पन्न हैं.
अगर आरक्षण में बदलाव हुआ तो पूरे देश में आंदोलन की धमकी तो दे दी है. अब जरा देश के गांवो में घूमकर उन्हें जागरूक तो करो. वो अपने बच्चों को स्कूल भेजे.
आगे बढ़ने के लिए नौकरी की प्रतियोगिता में भाग ले. आखिर कब तक दूसरों के यहां खेतों में काम करते रहोगे. आरक्षण के इस मुद्दे पर हमेशा चर्चा होती रहती है. नतीजा शून्य होता हैं. अब जरा बात सामान्य वर्ग की कर ले. क्या देश में सामान्य वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से मजबूत है? देश में सामान्य वर्ग बहुत से ऐसे लोग हैं जो किसी तरह से अपनी रोजी रोटी चलाते हैं. उनके पास भी खाने के लाले पड़े होगे. इस पर किसी राजनीतिक दल का ध्यान क्यों नही जाता है. क्या ये अपना बहुमूल्य वोट नही देते हैं. बहुत से ऐसे परिवार हैं जो अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाना चाहते होगें पर आर्थिक स्थिति मजबूत नही तो क्या करें?
चुपचाप बैंठ जाते हैं. एक नजर इस वर्ग पर भी सरकार को देखना चाहिए. इस देश में पहले धर्म, फिर जाति और फिर आरक्षण को लेकर लड़ाई हो रही है. जिसका पूरा लाभ राजनीतिक दलों और नौकरशाहों को मिलता है. बच्चा जन्म लेने से पहले भगवान से यही बहस करेगा कि हमें उस वर्ग में पैदा करना जहां आरक्षण हो. आरक्षण की ये आग देश को कहीं खोखला न कर दे.
ऐसे में भागवत जी का ये बयान काबिले तारीफ हैं. आरक्षण के मुद्दे पर नई नीति बननी चाहिए. और नीति को ऐसे बनाया जाए जिसमें दलित वर्ग के वो लोग जो वास्तव में इसके हकदार हैं उन्हें रखते हुए देश के अन्य वर्गों पर भी ध्यान देना चाहिए. दलितों के नाम पर राजनीति खेलना राजनीतिक दलों के लिए आसान है. तभी हर बात पर देश के इस वर्ग को घसीट लेते हैं.
या फिर इस तबके के लोगों को अपनी उगली के इशारों पर नचाने वाला समझते हैं. बात कुछ भी हो ऐसा ही रहा तो एक दिन सामान्य वर्ग भी सड़को पर उतर कर आंदोलन शुरू करेगा.
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