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सामान्य वर्ग के हाथ में क्या ?

एक सोंच
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सामान्य वर्ग के हाथ में क्या?

हमे नही रहना सामान्य वर्ग में. आखिर इस सामान्य वर्ग में रखा क्या है ? बस सिर्फ बाधांए होती हैं . स्कूल मे हो तो पूरी फीस जमा करो. चाहे आर्थिक स्थिति कितनी भी खराब हो. पढ़ लिखकर किसी तरह स्कूल मे कॉलेज पहुंचो तो दाखिले के लिए मेरिट अच्छी होनी चाहिए. जब पढ़ाई खत्म करो तो जॉब के लिए .

हर तरह से जिंदगी की जंग लडते रहो. इस आरक्षण ने इस वर्ग को यहां लाकर खड़ा कर दिया है कि सामान्य वर्ग हमेशा इन फंदो में फसकर झूलता रहे. आरक्षण देना ठीक है. जरूर दो आरक्षण. जिसे जरूरी हो उसे दो. देश में जाने कितने ऐसे सामान्य वर्ग के लोग है.

जिनके पास भी खाने के लिए रोटी और रहने के लिए घर नही है. एस-सी एस-टी और ओवीसी के बहुत से लोगों की आर्थिक स्थिति इनकी अपेक्षा काफी मजबूत होती है. लेकिन उनको आरक्षण मिलता है. और सामान्य जाति से तालुक रखने वालों का हाल बेहाल रहता है.

पढ़ने में फर्स्ट क्सास पास होना ने के साथ जरूरी है कि अंकों के प्रतिशत काफी अच्छे हो. मतलब 75 %  तक हो जरूर हो. अनुसूचित जन जाति में 40% से काम चल जाता है दाखिले में. वहां काबिलियत क्यों नही देखी जाती  ? क्यों नही कम्पटीशन कराया जाता ?

उसके आधार पर क्यों नही दाखिला देते. कहने को तो एक अच्छा जुमला है, सबका साथ, सबका विकास. विकास करो तो सबका करो. नौकरी के लिए जो जगह निकलती है उसमें आरक्षण क्यों दिया जाता है ? अगर उस वर्ग के पढ़ने वाले उस बच्चे में काबिलियत है तो प्रतियोगिता निकालें.

जैसा कि सामान्य वर्ग के छात्र करते हैं. 40 %  नम्बर पढ़ाई से लेकर नौकरी तक मान्य है. और यही नम्बर किसी के जिंदगी के लिए आसामान्य है. हर तरह से बाध्य कर दिया गया है. ये मापदंड तो कुछ सालों में ऐसे हावी होगें. तब सामान्य वर्ग का तबका कहा जाएगा. मेरे इस लेख का मकशद किसी जाति की भावनाओं ठेस पहुंचाना नही है. अगर पहुंचती है तो मुझे माफ करना .

हां इतना जरूर कि अपनी बातों को सबके सामने रखना चाहता हूं. एक तरफ कहा जाता है कि जाति-पाति भेद-भाव खत्म होना चाहिए. जो भेद-भाव सामान्य वर्ग के लोगों के साथ हो रहा है उस पर कौन ध्यान देता है. हमने तो ऊपर वाले से ये नही कहा था कि हमें उच्च जाति में पैदा करो. जब जन्म भी हुआ था तो पता भी नही था कि किस धर्म और किस जाति में हैं. आज जब बड़े हुए तो एहसाह हुआ कि क्या फायदा मिला इस जाति में तमाम बंधिसों के अलावा.

कानून भी इनकी सुरक्षा के लिए बना दिया गया. एससी एसटी एक्ट. चलो अच्छा किया. सुरक्षा होनी भी चाहिए. किसी को पताड़ित करना गलत है. लेकिन अगर ये लोग किसी सामान्य को पताड़ित करे तो . इस कानून का न जाने कितना दुर्प्रयोग किया जाता.

कितने लोगों को झूठे केस में फंसा दिया जाता है. सिर्फ उनकी इक बात को लेकर की जातिसूचक शब्दों के साथ गलत बोला गया है. बस इतने में तो बंदा अंदर. अब अपने बचाव में मुकदमा लड़ो. अगर दो लोग लड़ोगे तो कुछ अशब्द हमारे मुंह से तो कुछ दूसरे के मुंह से निकलेगे. ये मैं इसलिए नही कह रहा हूं.

एक सच्ची घटना का जिक्र करना चाहता हूं. जनवरी 2015 रायबरेली के नया पुरवा मोहल्ले की घटना है. जहां पर कुछ लोगों ने मिलकर एक उच्च वर्ग के लड़के को डण्डो से मारा. वो बेचारा सड़को पर पड़ा रहा. कोई मद्द नही की गई. पुलिस थाना हुआ तो जमानत पर छूटकर ताने मारना शुरू कर दिया. क्या कर लिया मेरा ?

छूट तो गए. इस केस को जब कोर्ट से किया गया तो, सामने एक बात आ रही थी. ये झूठा एससी एसटी एक्ट के तहत ये मुकदमा पीड़ित परिवार पर कर सकते है. ये बात उनके दिमाग में भी चल रही थी. जिसकी चर्चा होने लगी थी. उनके जिद्दी और नंगेपन की वजह से पूरे मोहल्ले में पीडित परिवार के पक्ष में कोई गवाही देने को तैयार नही.

ऐसे में आखिर क्या करे कोई ?  आजकल का समाज धीरे-धीरे बदल रहा है . जब हम बाहर पढ़ने जाते है, या नौकरी करते हैं. तो जाति-पाति का भेदभाव ज्यादा नही रह जाता है. खाने भी शेयर कर के खा लेते है. साथ मे कमरा भी शेयर कर लेते है. जब हम धीरे-धीरे जाति-पाति भेदभाव से मुक्त हो रहे हैं तो क्यों एक वर्ग को भेदभाव का शिकार बनाया जा रहा है.

इन सब चीजों को देखते हुए मन मे ख्याल आता है काश हमें सामान्य वर्ग में पैदा नही किया होता. समानता की ओर हो रहे प्रयास से कहीं देश एक बार फिर से असामानता की ओर न चला जाए.

इन सब बातों को देखकर हमें सिर्फ एक बात कपिल शर्मा की याद आती है, सामान्य वर्ग के हाथ में क्या? बाबा जी का ठुल्लू.

रवि श्रीवास्तव

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