एक सोंच
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इकराज़
दिल में छिपा, इक राज़ था मेरे।
खोज़ रहा था, जिसे सांझ-सवेरे।
उस पगली को, समझ न आता,
जहां देखूं बस, उसे ही पाता।
ये मेरे दिल, तू ही बता दे,
भूले को अब, रास्ता दिखा दे।
फिर रहा हूं, दर-बदर मैं,
मन में अपने, इकराज़ दबाएं,
मिल जाए कोई तो ऐसा,
जिससे दिल का हाल सुनाएं।
रवि श्रीवास्तव
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